कृषि में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और समाधान
भूमिका
जलवायु परिवर्तन वैश्विक कृषि प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में यह प्रभाव और भी अधिक दिखाई दे रहा है। फसल उत्पादन, मिट्टी की उर्वरता, जल संसाधन, पशुपालन और किसान की आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिकूल असर पड़ रहा है। अनियमित वर्षा, अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि और कीटों के हमले कृषि उत्पादन को बाधित कर रहे हैं। इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार कृषि को प्रभावित कर रहा है और इससे निपटने के लिए क्या समाधान उपलब्ध हैं।
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जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर प्रभाव
1. तापमान वृद्धि और फसल उत्पादन में गिरावट
पिछले कुछ दशकों में वैश्विक तापमान औसतन 1.1°C बढ़ चुका है, और भारत में भी तापमान वृद्धि 0.6°C प्रति सदी के हिसाब से हो रही है।
गेहूं, धान, मक्का और दलहन जैसी मुख्य फसलें उच्च तापमान के प्रति संवेदनशील होती हैं।
विशेष रूप से गेहूं का उत्पादन 35°C से अधिक तापमान पर तेजी से घटता है।
धान की फसल अधिक गर्मी और पानी की कमी के कारण प्रभावित होती है, जिससे पैदावार में 10-15% की गिरावट देखी गई है।
2. वर्षा चक्र में असंतुलन और सिंचाई पर प्रभाव
मानसून में अनिश्चितता बढ़ने से कभी अत्यधिक बारिश और कभी सूखा पड़ रहा है।
2022 में भारत में बंगाल और बिहार में बाढ़, जबकि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सूखा देखा गया।
फसल चक्र प्रभावित होने के कारण किसान सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे जल स्तर तेजी से घट रहा है।
खरीफ फसलें जैसे धान, गन्ना और मक्का अत्यधिक बारिश से प्रभावित होती हैं, जबकि रबी फसलें (गेहूं, चना, सरसों) कम वर्षा के कारण नुकसान झेलती हैं।
3. कीट और बीमारियों का बढ़ता प्रकोप
तापमान और आर्द्रता में बदलाव से नए प्रकार के कीट और रोग फसलों पर हमला कर रहे हैं।
2020 में टिड्डियों के हमले ने राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में हजारों हेक्टेयर फसलें नष्ट कर दीं।
कपास की फसल में गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) और धान की फसल में ब्लास्ट रोग बढ़ते तापमान और आर्द्रता के कारण तेजी से फैल रहे हैं।
4. मृदा उर्वरता में गिरावट और बंजर भूमि का विस्तार
अनियमित वर्षा और तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी की नमी तेजी से कम हो रही है।
भारत में 28% कृषि भूमि मृदा क्षरण (Soil Degradation) से प्रभावित हो चुकी है।
बाढ़ और अत्यधिक वर्षा से मृदा अपरदन (Soil Erosion) बढ़ गया है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है।
अत्यधिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी का जैविक संतुलन बिगड़ रहा है।
5. पशुपालन पर प्रभाव
अत्यधिक गर्मी से दुधारू पशुओं जैसे गाय और भैंस की दूध उत्पादन क्षमता 10-15% तक घट गई है।
चारे और पानी की कमी से पशुओं में बीमारियां बढ़ रही हैं।
जलवायु परिवर्तन से चिकनगुनिया, ब्रुसेलोसिस और लंपी स्किन डिजीज जैसी पशु-रोगों का खतरा बढ़ गया है।
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जलवायु परिवर्तन से निपटने के समाधान
1. जलवायु अनुकूल फसलों का विकास
ऐसे बीज विकसित किए जा रहे हैं जो कम पानी और अधिक गर्मी सहन कर सकते हैं।
धान की खेती में DRR-44 और IR-64 जैसी जलवायु-प्रतिरोधी किस्में विकसित की गई हैं।
गेहूं के लिए HD 2967 और HD 3086 जैसी उन्नत किस्में उपयोगी साबित हो रही हैं।
2. स्मार्ट कृषि तकनीक का उपयोग
ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल-संरक्षण तकनीक अपनानी चाहिए।
सेंसर-आधारित सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर किसान जल उपयोग को नियंत्रित कर सकते हैं।
मृदा परीक्षण (Soil Testing) से खेतों में आवश्यक पोषक तत्वों की जानकारी लेकर उर्वरकों का उचित उपयोग किया जा सकता है।
3. कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उपाय
जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।
पराली जलाने की समस्या से बचने के लिए हैप्पी सीडर और सुपर सीडर मशीन का उपयोग किया जाना चाहिए।
कृषि मशीनरी में सौर ऊर्जा और बायोगैस तकनीक अपनाई जानी चाहिए।
4. जल संरक्षण और प्रबंधन
वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
माइक्रो इरिगेशन तकनीकों को अपनाकर जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
कृषि भूमि के लिए मल्चिंग तकनीक का उपयोग किया जाए, जिससे मिट्टी की नमी बनी रहे।
5. सरकार की योजनाएं और सहायता
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत जल प्रबंधन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय नवाचार कृषि जलवायु योजना (NICRA) के तहत किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
कृषि बीमा योजना से किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान की भरपाई में मदद मिल रही है।
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निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में खाद्य सुरक्षा पर गहरा संकट आ सकता है। किसानों को जलवायु-अनुकूल खेती तकनीकों को अपनाने, जल संरक्षण करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। सरकार, वैज्ञानिक और किसान मिलकर इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं।
"सतत कृषि ही हमारे भविष्य की कुंजी है!"
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