राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति: राज्यों का विरोध क्यों?
भारत में राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति (National Policy Framework on Agricultural Marketing) को लेकर बहस जारी है। सरकार ने इसे किसानों के हित में लाने का दावा किया है, लेकिन कुछ राज्य इस नीति के मसौदे (draft) को मानने से इनकार कर रहे हैं।
नीति का उद्देश्य
इस नीति का उद्देश्य कृषि उत्पादों के विपणन को आसान बनाना, किसानों को बेहतर दाम दिलाना और बिचौलियों की भूमिका कम करना है। इससे किसानों को अपने उत्पाद सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की स्वतंत्रता मिलेगी।
राज्यों का विरोध क्यों?
1. संघीय ढांचे का उल्लंघन – कृषि विपणन संविधान की राज्य सूची में आता है, इसलिए कुछ राज्यों को लगता है कि यह नीति उनके अधिकारों में दखल दे रही है।
2. APMC मंडियों का प्रभाव – कई राज्यों में कृषि उपज मंडी समितियाँ (APMCs) सरकार को राजस्व देती हैं। नई नीति से इनका नियंत्रण कम हो सकता है।
3. छोटे किसानों पर असर – कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति बड़े कॉर्पोरेट्स को लाभ पहुँचा सकती है, जबकि छोटे किसान नुकसान में रह सकते हैं।
4. भाषा और नियमों की अस्पष्टता – कई राज्यों को लगता है कि नीति के कुछ प्रावधान ठीक से स्पष्ट नहीं किए गए हैं, जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
आगे क्या?
सरकार का कहना है कि वह राज्यों से बातचीत कर रही है और उनके सुझावों पर विचार किया जाएगा। किसानों की भलाई और राज्य सरकारों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा। अब देखना यह है कि सरकार इस नीति को सहमति के साथ लागू कर पाती है या नहीं।
आपका क्या विचार है? क्या यह नीति किसानों के लिए फायदेमंद होगी?
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