कृषि में फसल विविधता का महत्व
1. परिचय
कृषि में फसल विविधता (Crop Diversity) एक महत्वपूर्ण रणनीति है, जिसमें विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती की जाती है ताकि उत्पादन में स्थिरता बनी रहे और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग किया जा सके। यह तकनीक किसानों को जलवायु परिवर्तन, कीट और रोगों से बचाने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और आर्थिक स्थिरता प्रदान करने में सहायक होती है।
2. फसल विविधता के प्रकार
(A) आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity)
यह एक ही फसल की विभिन्न किस्मों को उगाने की प्रक्रिया है।
उदाहरण: गेहूं की विभिन्न किस्में – HD-2967, PBW-343, K-1006।
यह तकनीक जलवायु परिवर्तन, रोगों और कीटों के प्रति सहनशीलता बढ़ाने में सहायक होती है।
(B) प्रजातीय विविधता (Species Diversity)
इसमें एक ही खेत में अलग-अलग प्रजातियों की फसलें उगाई जाती हैं।
उदाहरण: खेत में गेहूं, सरसों, चना और मटर को एक साथ उगाना।
इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और उत्पादन में विविधता आती है।
(C) पारिस्थितिक विविधता (Ecosystem Diversity)
यह एक संपूर्ण कृषि प्रणाली है, जिसमें मिश्रित खेती, वृक्षारोपण और बहु-फसल प्रणाली शामिल होती है।
उदाहरण: सिल्वोपाश्चर प्रणाली (पेड़ + घास + पशुपालन), सिल्वोअरबल प्रणाली (पेड़ + फसल)।
इससे पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है और पर्यावरण को लाभ होता है।
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3. फसल विविधता के लाभ
(1) जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा
फसल विविधता से विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप उत्पादन किया जा सकता है।
सूखा-सहिष्णु फसलें (ज्वार, बाजरा, चना) और अधिक पानी वाली फसलें (धान, गन्ना) मिलाकर उगाने से जलवायु अनिश्चितताओं का असर कम होता है।
(2) कीट एवं रोग नियंत्रण
मोनोकल्चर (सिर्फ एक ही फसल उगाने) से कीट और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
मिश्रित फसलें कीटों के चक्र को तोड़ती हैं और प्राकृतिक कीटनाशकों की भूमिका निभाती हैं।
उदाहरण: सरसों के साथ धनिया उगाने से कीट नियंत्रण में मदद मिलती है।
(3) मिट्टी की उर्वरता में सुधार
दलहनी फसलें (मूंग, उड़द, अरहर) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
भूमि की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जैविक फसल विविधता आवश्यक है।
(4) उत्पादन में निरंतरता एवं जोखिम प्रबंधन
यदि एक फसल नष्ट हो जाती है तो अन्य फसलों से होने वाली आय से किसानों को सुरक्षा मिलती है।
बहु-फसल प्रणाली किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
(5) खाद्य सुरक्षा एवं पोषण में सुधार
विविध फसलें पोषण मूल्य को बढ़ाती हैं।
उदाहरण: अनाज (गेहूं, जौ) + दलहन (चना, मूंग) + तिलहन (सरसों, मूंगफली) = संतुलित पोषण।
(6) जैव विविधता एवं पारिस्थितिक संतुलन
फसल विविधता से परागण करने वाले कीटों और लाभकारी जीवों की संख्या बढ़ती है।
यह सतत कृषि पद्धति के लिए आवश्यक है।
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4. फसल विविधता अपनाने के उपाय
(A) फसल चक्र (Crop Rotation)
हर मौसम में अलग-अलग फसलें उगाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
उदाहरण: एक वर्ष में – धान → गेहूं → मूंग।
(B) मिश्रित खेती (Mixed Cropping)
एक ही खेत में दो या अधिक फसलें उगाने की विधि।
उदाहरण: मक्का + अरहर, सरसों + गेहूं।
(C) बहु-फसल प्रणाली (Intercropping)
एक ही खेत में अलग-अलग ऊंचाई और जड़ गहराई वाली फसलें उगाई जाती हैं।
उदाहरण: गन्ने के साथ मूंगफली या सरसों।
(D) परंपरागत एवं स्थानीय फसलों को बढ़ावा
जैव विविधता को बनाए रखने के लिए देसी बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए।
उदाहरण: देशी बाजरा, देशी चावल (काला नमक, मटीराइस)।
(E) जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार फसल चयन
जल स्रोत और मिट्टी की उर्वरता के आधार पर फसलें उगानी चाहिए।
उदाहरण: रेतीली मिट्टी में बाजरा और मोटे अनाज, काली मिट्टी में कपास और तिलहन।
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5. सरकार द्वारा फसल विविधता को बढ़ावा देने के प्रयास
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) – कृषि विविधीकरण के लिए वित्तीय सहायता।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – सूखे क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना।
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) – जैविक खेती को प्रोत्साहित करना।
कृषि जलवायु क्षेत्रीय योजना (Agro-Climatic Planning) – जलवायु आधारित फसल उगाने की रणनीति।
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6. निष्कर्ष
फसल विविधता किसानों के लिए एक प्रभावी और स्थायी कृषि पद्धति है। यह न केवल उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षित रखती है। बदलते जलवायु और बढ़ती कृषि चुनौतियों को देखते हुए, यह आवश्यक हो गया है कि किसान आधुनिक तकनीकों के साथ-साथ पारंपरिक खेती को भी अपनाएं। इससे उत्पादन बढ़ेगा, मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी और संपूर्ण कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ मिलेगा।
"फसल विविधता अपनाएं, सतत कृषि और आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ें!"
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